भक्ति ओसियन में आपका स्वागत है। जैसे की आपको पता ही होगा, हिन्दू धर्म में भगवान शिव को बड़े ही सम्मान से पूजा जाता है। उनके बहुत से नाम जैसे महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ हैं जिससे लोग उन्हें पुकारते हैं। जैसे ब्रह्मा जी को सृष्टि का निर्माता कहा जाता है, विष्णु जी को पालक, और ठीक उसी प्रकार, भगवान शिव सृष्टि के संहारक हैं। इस ब्लॉग में, आज हम आपको lord shiva facts in hindi में बताएंगे, जिनके बारे में कहीं न कहीं चर्चा होती है। चलिए, हम आपको भगवान शिव से जुड़े हुए अलग-अलग रहस्यों के बारे में बताते हैं।
शिव को आदिनाथ शिव क्यों कहा जाता है? ( Aadinath Shiva )
सबसे पहले शिव जी ने ही जीवन की उपासना और उसका प्रचार किया, इसलिए उन्हें ‘आदिदेव’ कहा जाता है। ‘आदि’ का अर्थ होता है प्रारंभ। उनका एक और नाम भी है ‘आदिश’।
शिव जी के शास्त्र और अस्त्र ( Shiva Weapons )
भगवान शिव के पास धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन हैं, जो कि उनके प्रमुख आयुध हैं। उनके साथ ही, उनके साथी अस्त्रों में पाशुपतास्त्र और त्रिशूल भी हैं।
शिव जी के साथी नाग का क्या नाम है?
शिव के गले में लटका हुआ नाग उनका साथी है, जिसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
शिव जी की पहली पत्नी कौन थीं? (Shiva Wife )
शिव की पहली पत्नी सती थीं, जिन्होंने अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया।
शिव जी के कितने पुत्र थे? (Shiva Son)
भगवान शिव के 7 पुत्र थे, जिनमें गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अंधक, अयप्पा और भूमा शामिल हैं।
भगवान शिव की कितनी पुत्रियां थी? (Shiva Daughter)
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव की पांच पुत्रियां थीं, जो नाग कन्यायें थीं और उनके नाम जया, विषहर, शामिलबारी, देव और दोतलि है।
शिव जी के कितने शिष्य थे? ( Shiv ke Shishya )
शिव के 7 शिष्य थें जिनमें बृहस्पति, शुक्र, विशालाक्ष, सहस्राक्ष, प्राचेतस मनु, महेन्द्र, भरद्वाज और गौरशिरस मुनि शामिल हैं। शिव जी के इन्ही शिष्यों ने उनके ज्ञान को प्रचारित किया और धरती पर अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भगवान शिव के विशेष सेवक कौन थे?
भगवान शिव के निषेध या सेवकों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव जी का सेवक माना जाता है।
भगवान शिव की पंचायत में कौन-कौन शामिल है?
भगवान गणपति, सूर्य, देवी, विष्णु, और रुद्र ये भगवान शिव की पंचायत कहलाते हैं।
भगवान शिव के द्वारपाल कौन-कौन है?
भगवान शिव के द्वारपाल नंदी, रिटी, स्कंद, वृषभ, गणेश, भृंगी, उमा-महेश्वर और महाकाल हैं।
भगवान शिव के अनुयायी कौन है?
जिस तरह जय और विजय विष्णु के अनुयायी हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि भगवान शिव के अनुयायी हैं।
सभी धर्मों का केंद्र भगवान शिव को क्यों कहा जाता है?
भगवान शिव के चिन्हों और विशेषताओं में सभी धर्मों के लोग अपने प्रतीक खोज सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में भगवान शिव के उपस्थिति का परिणाम स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। भगवान शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
बौद्ध साहित्य के निर्माता
बौद्ध साहित्य के विद्वान प्रोफेसर उपासक के मुताबिक, शंकर ने बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में 27 बुद्धों का उल्लेख किया है, जिनमें से 3 के नाम अतिप्राचीन हैं – तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव
भगवान शिव को देवता और असुर दोनों के द्वारा पूजा जाता है। उन्होंने रावण को भी वरदान दिया और साथ ही राम जी को भी। भस्मासुर, शुक्राचार्य जैसे कई असुरों को भी उन्होंने वरदान दिए थे। शिव सभी जातियों, वर्णों, धर्मों और समाजों के सर्वोच्च देवता माने जाते हैं।
इन्हें भी पढ़ें
- हनुमान जी की सिद्ध चौपाई
- निशंक होई रे मना तारक मंत्र
- मनसा देवी का बीज मंत्र
- काल भैरव अष्टकम
- वैदिक पुष्पांजलि मंत्र
शिव चिह्न
व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकते हैं, उसे शिव का चिह्न माना जाता है। रुद्राक्ष और त्रिशूल भी उनका प्रतीक हैं। कुछ लोग डमरू और अर्ध चन्द्र को भी उनके चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग की पूजा करते हैं।
भगवान शिव की गुफा
शिव जी ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ में गुफा बनाई थीं। यह गुफा त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर, भगवान शिव ने एक दूसरी गुफा में माता पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था, जो ‘अमरनाथ गुफा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
शिव जी के पैरों के निशान
भारत में कई स्थानों पर शिव जी के पैरों के निशान मिलते हैं।
- श्रीलंका के रतन द्वीप पर स्थित श्रीपद मंदिर में एक ऐसा पवित्र स्थान है जहां शिवजी के पैरों के चिह्न हैं। इसे ‘सिवानोलीपदम’ भी कहते हैं।
- तमिलनाडु के थिरुवेंगडू क्षेत्र के श्रीस्वेदारण्येश्वर मंदिर में भी शिव जी के पैरों का एक पवित्र चिह्न जिसे ‘रुद्र पदम’ कहा जाता है।
- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे हुए रुद्रपद मंदिर में भी शिव जी के दाएं पैर का निशान है ऐसा माना जाता है।
- उत्तराखंड के जागेश्वर मंदिर के पास भी शिव के पदचिह्न हैं। यहां भी पंडवों के समय का एक इतिहास संजीवनी मंदिर है।
- झारखंड के रांची में भी ‘पहाड़ी बाबा मंदिर’ में शिवजी के पैरों के निशान हैं।
शिव जी के रूपों के नाम
पिप्पलाद, वीरभद्र, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, गृहपति, शरभावतार, दुर्वासा, वृषभ, हनुमान, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, सुरेश्वर, अवधूत, किरात, सुनटनर्तक, भिक्षुवर्य, ब्रह्मचारी, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, यक्ष, हंसरूप, नतेश्वर, द्विज आदि उनके अवतार हैं। इसके साथ ही, वेदों में उनके 11 रूप का जिक्र है – भीम, पिंगल, कपाली, विरुपाक्ष, अजपाद, विलोहित, शास्ता, शंभू, भव, आपिर्बुध्य और चण्ड।
कैलाश पर्वत शिव जी का घर ( kailash parvat ka rahasya )
तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। इस पर्वत के नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान माना जाता है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमशः स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
भगवान शिव के भक्त (देवी-देवता)
सभी देवी-देवताओं सहित ब्रह्मा, और विष्णु भी शिव जी के अदम्य भक्त हैं। हरिवंश पुराण के अनुसार, कृष्ण जी ने कैलास पर्वत पर शिव को खुश करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने भी रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा की थी।
शिव को प्रसन्न करने का मंत्र ( Shiv Mantra in Sanskrit )
शिव के प्रसन्न करने के दो प्रमुख मंत्र हैं जो इस प्रकार हैं।
- “ॐ नम: शिवाय”
- “ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ”।
शिव जी के व्रत और त्योहार
सोमवार, प्रदोष, और श्रावण मास में शिव जी के लिए व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव जी के प्रमुख त्योहार हैं।
शिव जी के प्रचारक
भगवान शिव की विशेषता को उनके शिष्यों ने आगे बढ़ाया। इसमें बड़े-बड़े नामों में बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि शामिल हैं। इसके साथ ही वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय भी शैव समुदाय के विस्तार का हिस्सा रहे। इस परंपरा में आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का सबसे उच्च माना जाता है। उनके बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।
शिव जी की महिमा
शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। उन्होंने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया। उन्होंने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ा था। ब्रह्मा द्वारा पाप किए जाने पर उन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
शिव जी के कितने नाम है ( Shiv ji ke naam )
शिव के बहुत से नाम हैं, पुराणों में 108 नामों का उल्लेख है, उनमे से कुछ प्रमुख नाम महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र हैं।
अमरनाथ में अमृत का ज्ञान
शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में ज्ञान दिया, जिसका अब अनेकानेक शाखाएं हैं। यह ज्ञान विज्ञान और तंत्र के मूल सूत्रों में है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ इसी ज्ञान के 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
शिव ग्रंथ
शिव की पूर्ण शिक्षा और दीक्षा वेद, विज्ञान भैरव तंत्र, उपनिषद, शिव संहिता और शिव पुराण में है। इसके आलावा, तंत्र के कई ग्रंथों में भी शिव जी का उपदेश है।
शिवलिंग
प्रलयकाल में समस्त सृष्टि लीन हो जाती है और पुन: सृष्टि में प्रकट होती है, इसे लिंग कहा जाता है। यह संपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक है, जो बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु ऊर्जा है और नाद शिव। इसलिए शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।
बारह ज्योतिर्लिंग कौन से हैं? ( Barah Jyotirling ke naam )
सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग शिव के बारह अवतार हैं, जिन्हें ‘व्यापक प्रकाश’ का प्रतीक कहा जाता है। इन्हें शिवपुराण में ‘ज्योति पिण्ड’ के रूप में उल्लेख किया गया है।
दूसरी मान्यता की माने तो शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में आकाश से गिरी हुई ज्योतियों के पिण्ड पृथ्वी पर गिरे और इनसे कई प्रमुख शिवलिंग बने इन्ही को बारह ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
शिव जी का दर्शन
जो लोग शिव के जीवन और दर्शन को सही बुद्धि वाले और सच को समझने वाले मानते हैं, वे वास्तविक शिवभक्त हैं। शिव का दर्शन कहता है कि जीवों को सच्चाई में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी मानसिक चित्तवृत्तियों से नहीं लड़ो, उन्हें नए नजरिए से देखो, और कल्पना का भी उपयोग करो।
शिव और शंकर
शिव का नाम शंकर के साथ जुड़ा जाता है। लोग शिव, शंकर, भोलेनाथ कहते हैं। अब, कई लोग इसे दो अलग-अलग सत्ताओं के नाम मानते हैं। हालांकि शंकर को भी शिवरूप ही माना जाता है।
भगवान शिव – देवों के देव (महादेव)
जब देवताओं को किसी भी बड़े संकट आभास होता था, तो वे सभी महादेव के शरण में जाते थे। चाहे दैत्यों, राक्षसों या अन्य किसी भी शक्ति का हो, शिव उन सबके प्रति अपनी शक्ति और कृपा प्रकट करते थे। उनकी विशेषता यह थीं कि वे हमेशा सत्य के प्रति प्रतिबद्ध रहते थे।
शिव को सर्वकालिक क्यों कहा जाता है?
भगवान शिव हर युग में अपने भक्तों के साथ हैं। उन्होंने रामायण काल, महाभारत युग, और विक्रमादित्य के काल में भी अपनी विशेष उपस्थिति प्रदर्शित की। भविष्य पुराण के अनुसार, राजा हर्षवर्धन को भी उनके दर्शन प्राप्त हुए थे। इसलिए शिव एक सर्वकालिक देव हैं, जो हर समय और हर क्षण अपने भक्तों के साथ हैं।
शिव जी को क्या चढ़ाना चाहिए?
भगवान शिव की पूजा के लिए जल, बेलपत्र, अक्षत, धतूरा, भांग, कपूर, दूध, चावल, चंदन, भस्म और रुद्राक्ष चढ़ाया जाता है। इसके अलावा, शिवलिंग को स्नान कराकर पंचामृत से अर्पण करना, फिर बेलपत्र, धतूरा और शमी के पत्तों के साथ चंदन और विभूति लगाना भी शुभ माना जाता है।
शिव पूजा से लाभ ( shiv puja ke fayde )
शिव पूजा के लाभ कुछ इस प्रकार हैं:
- शिव पूजा से मनचाहा जीवनसाथी मिल सकता है।
- शिव पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है और मनोरथ पूर्ण होते हैं।
- शिव पूजा करने से घोर संकट से बच सकते हैं और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि मिल सकती है।