त्रेतायुग में हनुमान जी और जामवंत जी को प्रभु श्री राम ने हमेशा चिरंजीवी रहने का वरदान दिया था। श्री राम ने तब कहा था कि मैं द्वापरयुग में तुमसे मिलूंगा। क्योंकि द्वापरयुग में श्री राम कृष्ण रूप में हनुमान जी से मिले थे। प्रभु हनुमान जी को एक कल्प तक इस धरती पर रहने का वरदान मिला है।
” यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकंजलि, वाष्प वारि परिपूर्ण लोचन मारुति नमत राक्षसांतक।।
अर्थात, कलयुग में जहां जहां भगवान राम की कथा कीर्तन इत्यादि होते है वहां हनुमान जी गुप्त रूप से विराजमान रहते है। अब अगर हनुमान जी इस धरती पर विराजमान है तो आखिर वो कहां है।
माता सीता के वचन के अनुसार : अजर अमर गुन निधि सेतु होऊ ।। करहुं बहुत रघुनायक छोउ।।
यदि व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ इनका आश्रय ग्रहण कर लें तो उसे भी तुलसीदास जी के भांति हनुमान और राम के दर्शन करने में देर नहीं लगती।
श्रीमद भगवत पुराण के अनुसार प्रभु हनुमान जी कलयुग में गंधमाद्न पर्वत पर निवास करते है। यह पर्वत हिमालय के हिमवंत पर्वत के पास है। जिसे यक्षलोक भी कहते है। यहां पर एक बहुत ही अद्भुत सरोवर और उसमे खिलने वाले कमल की कथा पुराणों में मिलती है। हनुमान जी इसी सरोवर में रहते हैं। और प्रतिदिन श्री राम की पूजा करने के लिए कमल का पुष्प अर्पित करते है।
कमल के पुष्प को लेकर क्या है कहानी
कहते है कि इस कमल को प्राप्त करने की इच्छा पौंड्र नगरी के नकली कृष्ण पौंड्रक के व्यक्त की थी। तब उसके वानर दिवत् ने इसे लाने का प्रयास किया था। लेकिन हनुमान जी के कारण ऐसा नही कर पाया। अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। इंद्रलोक में जाते समय अर्जुन को हिमवंत और गंधमादन को पार करते हुए दिखाया गया है। एक बार भीम कमल लाने के लिए इसी पर्वत पर गए थे।जहां उन्होंने हनुमान जी को लेटे देखा था।
हनुमान ने तब भीम से कहा था की तुम ही मेरी पूंछ हटाकर निकल जाओ। भीम उनकी पूंछ नही हटा पाए थे। और उनका घमंड टूट गया था। फिर उन्होंने हनुमान जी से क्षमा मांगी। और अपने विराट रूप के दर्शन करने की इच्छा मांगी । तब हनुमान ने भीम को अपना विराट रूप दिखाया था। हनुमान जी कलयुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते है। इसका वर्णन भगवत में है। इसी पर्वत में ऋषि, सिद्ध, चारण,विद्याधर , देवता, किन्नर, अप्सराएं, निवास करती है।
वर्तमान में कहां है गंधमादन पर्वत
यह पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत से ऊपर उत्तर दिशा की ओर स्थित हैं। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में आता था। सुमेरू पर्वत के चारो दिशाओं में गंजदंत पर्वत में से एक उस काल में गंधमादन कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। आपको बता दें कि इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम में स्थित है जहां हनुमान जी ने समुद्र को पार करने के लिए छलांग लगाई थी।
इस गंधमादन पर्वत पर एक मंदिर बना है। जिसमें हनुमान जी के साथ श्री राम की मूर्तियां स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि श्री राम इसी पर्वत पर वानर सेना साथ बैठकर युद्ध की योजना बनाया करते थे। भगवान राम के पैरो के निशान भी यहां दिखते हैं।
कैसे पहुंचे गंधमादन पर्वत
अगर आप इस पवित्र पर्वत में जाना चाहते है तो इसके लिए तीन प्रमुख रास्ते बताए जाते है। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे, दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे, तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए । आप इन तीनों रास्तों से जा सकते हैं। यह पर्वत कैलाश के उत्तर दिशा में स्थित है। हनुमान जी ने पूरी धरती में सिर्फ इसी स्थान को अपना निवास स्थान क्यों बनाया ।
इसका जवाब श्रीमद भागवत पुराण में मिलता है। जब श्री राम धरती से बैकुंड को प्रस्थान कर रहे थे। तो उन्होंने हनुमान जी को धरती पर रहने का आदेश दिया। और हनुमान जी ने फिर गंधमादन को अपना निवास स्थान चुन लिया।