Rajrappa Mandir history

Rajrappa Mandir History रजरप्पा मंदिर का इतिहास

Rajrappa Mandir History- रजरप्पा शहर झारखण्ड की राजधानी रांची से 80 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यहाँ का छिन्नमस्तिका माता का मंदिर बहुत ही मशहूर है जहाँ सालों भर भक्तों की अपार भीड़ लगी रहती है। ये मंदिर दामोदर नदी और भैरवी नदी के संगमतट पर स्थित है। रामगढ़ से रजरप्पा 28 किलोमीटर दूर है, यहाँ का झरना और छिन्नमस्तिका माता का मंदिर पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।

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छिन्नमस्तिका माता की कहानी Rajrappa Mandir History

शिवपुराण और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माँ ने चंडी का रूप धारण करके सभी राक्षसों का वध किया तथा देवताओं को विजय दिलाई। इसके बाद हर तरफ माँ की जय जयकार होने लगी लेकिन अभी भी माँ की दो सहेलियां अजया और विजया जो माँ के साथ राक्षसों से युद्ध कर रही थी उनकी रक्त पिपासा ( खून की प्यास ) शांत नहीं हुई थी। उन दोनों की रक्त पिपासा शांत करने के लिए माँ ने अपना सर काट डाला।

इससे माँ के शरीर से खून के तीन धाराएं बह निकली। माँ ने रक्त की दो धाराएं अजया और विजया के मुँह में दे दी और तीसरी धारा उन्होंने स्वयं पीना शुरू किया। तभी से देवी माँ के इस स्वरुप को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा।

देवी छिन्नमस्तिका मंदिर में माँ के शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं और वो अपने बाएं पांव को आगे करके कमल के फूल खड़ी हैं। माँ के पैरों के नीचे काम मुद्रा में कामदेव और रति सोये हुए हैं। मां छिन्नमस्तिके के गले में सर्पमाला तथा मुंडमाल है। माँ के केश बिखरे और खुले हुए हैं , जीभ बाहर है तथा माँ आभूषणों से सुसज्जित नग्नावस्था में हैं। ये स्वरुप माँ का दिव्य रूप हैं।

माँ के दाहिने हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। माँ छिन्नमस्तिका के आजु बाजु में अजया और विजया खड़ी हैं जिन्हे डाकिनी और शाकिनी भी कहा जाता है और माँ उन्हें रक्तपान करा रही हैं तथा स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। माँ के गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं।

रजरप्पा मंदिर का इतिहास

विशेषज्ञों के अनुसार ये मदिर 6000 साल पुराना है। कुछ इतिहासकार इसे महाभारत काल का मंदिर बताते हैं। रजरप्पा मंदिर परिसर में माँ छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर भी प्रसिद्ध पूजा स्थल हैं। माँ का ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है।

माँ दुर्गा के 10 स्वरूपों को महाविद्या कहके पुकारा जाता है और इसमें माँ छिन्नमस्तिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। माँ ने अपने पैरों के नीचे काम और रति को दबा रखा है जिसका अर्थ है की उन्होंने सभी प्रकार के काम रति की इच्छाओं का दमन कर दिया है।

पुराणों के अनुसार माँ का स्वरुप चाहे भयानक हो पर माँ अपने भक्तों के लिए अत्यंत दयालु हैं। माँ के मंदिर में लोग दूर दूर से मन्नत मांगने आते हैं। यहाँ लोग अपने नए और पुराने वाहनों की पूजा करने भी आते हैं। ऐसी मान्यता है की माँ की पूजा करने के बाद वाहनों पर किसी प्रकार की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती और वहां किसी भी प्रकार के नुकसान और दुर्घटना से बचे रहते हैं।

रोज सुबह 4 बजे से माँ का दरबार सजना शुरू हो जाते है और भक्तों की लम्बी कतार लगनी प्रारम्भ हो जाती है। त्योहारों के मौके पर तो कई बार ये कतार 3 से 4 किलोमीटर लम्बी भी हो जाती है। मंदिर के आस पास फल, फूल और पूजन सामग्री की दुकानें हैं जिनसे भक्त पूजन के लिए आवश्यक सामग्री ले सकते हैं।

रजरप्पा मंदिर परिसर में कई कुंड बने हुए हैं जिनमे मुंडन कुंड, यज्ञ कुंड, वायु कोण कुंड, अग्निकोण कुंड इत्यादि प्रमुख हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार के पूजा के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। या सालों भर पूजा पथ, यज्ञ, हवन, मुंडन इत्यादि चलता रहता है।

Conclusion

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