माँ पार्वती ने कई भयानक राक्षसों को पराजित करने के बाद, अपनी सहचरों जया और विजया (जिन्हें डाकिनी और वारिणी के नाम से भी जाना जाता है) के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने का निर्णय लिया। माँ पार्वती अत्यधिक प्रसन्न थीं और उनके अंदर प्रेम की भावना उमड़ रही थी।
उनका रंग सांवला हो गया और प्रेम की भावना ने पूरी तरह से उन्हें अपने वश में कर लिया। वहीं दूसरी ओर, उनकी सहचर भूख से व्याकुल थीं और उन्होंने माँ पार्वती से कुछ खाने के लिए माँगा। पार्वती ने उनसे कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए कहा और वादा किया कि वे उन्हें बाद में भोजन कराएंगी, और फिर वह आगे बढ़ने लगीं।
थोड़ी देर बाद, जया और विजया ने फिर से माँ पार्वती से विनती की और कहा कि वे विश्व की माता हैं और वे उनके बच्चे हैं, इसलिए उन्हें शीघ्र ही भोजन करवाएं। पार्वती ने उत्तर दिया कि वे घर पहुँचने के बाद ही भोजन करेंगी। लेकिन दोनों सहचर भूख को और सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने तुरंत अपनी भूख मिटाने की मांग की।
करुणामयी पार्वती मुस्कुराईं और अपने नाखून से अपना सिर काट लिया। तुरंत ही, रक्त तीन दिशाओं में बहने लगा। जया और विजया ने दो दिशाओं से बहते रक्त को पिया और माँ पार्वती ने स्वयं तीसरी दिशा से बहते रक्त को पिया। चूँकि माँ पार्वती ने अपना सिर स्वयं काट लिया, इसलिए उन्हें माँ छिन्नमस्ता के नाम से जाना जाता है। माँ पार्वती अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए ऐसा करती हैं, इसलिए उन्हें माँ चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है।
Chintpurni Mata Ki Aarti चिंतपूर्णी माता की आरती
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी,
जग को तारो भोली माँ
जन को तारो भोली माँ,
काली दा पुत्र पवन दा घोड़ा ॥
॥ भोली माँ ॥
सिन्हा पर भाई असवार,
भोली माँ, चिंतपूर्णी चिंता दूर ॥
॥ भोली माँ ॥
एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा,
तीजे त्रिशूल सम्भालो ॥
॥ भोली माँ ॥
चौथे हाथ चक्कर गदा,
पाँचवे-छठे मुण्ड़ो की माला ॥
॥ भोली माँ ॥
सातवे से रुण्ड मुण्ड बिदारे,
आठवे से असुर संहारो ॥
॥ भोली माँ ॥
चम्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर,
बैठी दीवान लगाये ॥
॥ भोली माँ ॥
हरी ब्रम्हा तेरे भवन विराजे,
लाल चंदोया बैठी तान ॥
॥ भोली माँ ॥
औखी घाटी विकटा पैंडा,
तले बहे दरिया ॥
॥ भोली माँ ॥
सुमन चरण ध्यानु जस गावे,
भक्तां दी पज निभाओ ॥
॥ भोली माँ ॥
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी,
जग को तारो भोली माँ।